आत्महत्या जैसे गंभीर विषय पर जब बात होती है तब सबसे पहले अशिक्षा को, जागरूकता की कमी को और सरकार को आंख मूंद कर हम कोसते नजर आते हैं लेकिन जो एक वाजिब सवाल है वह फालतू के शोर में कहीं दब कर रह जाता है। यह सवाल है कि चलो एक बार यह हम मां भी लें कि अशिक्षा, गरीबी और जागरूकता आत्महत्या की वजह हैं लेकिन जो आत्महत्या के आंकड़े शहरों से तथाकथित पढ़े-लिखे वर्ग से आ रहे हैं वहां ऐसा क्यों है? वह तो जागरूक हैं, अच्छी आय भी है, पढ़े-लिखे और सभ्य भी हैं, फिर ऐसा क्यों हो रहा। यह सवाल इसलिए अहम हो जाता है क्योंकि सबसे ज्यादा आत्महत्या के मामले 15 से 30 आयुवर्ग के लोगों में देखने को मिले जो पढ़ा लिखा है या मॉडर्न है।
सरकारों के लिए यह वर्ग मुद्दे से बाहर है। आपको अगर इसकी बानगी देखनी हो तो आप किसान आत्महत्या का कोई एक केस गांव से और एक केस किसी हाई प्रोफाइल इलाके के किसी तथाकथित बड़े आदमी का लें। दोनो में कारण ढूंढें, पुलिस की कार्रवाई ढूंढें और मीडिया कवरेज तो जरूर ढूंढें। आपके हर सवाल का जवाब मिल जाएगा और आपको समझ आ जायेगा कि कितना अंतर है एक ही मनः स्थित्ति, एक ही अंजाम लेकिन देखने और समझने का नजरिया अलग-अलग है।