सोशल मीडिया एक ऐसी शक्ति के रूप में उभरा है जिसका प्रयोग किसी की मदद के लिए भी किया जा सकता है और असामाजिक कार्यों के साथ हंगामे के लिए भी। 2014 में मोदी सरकार के आने के बाद ट्विटर पीएम और उनके मंत्रियों का जनता से संवाद का सबसे बेहतरीन और लोकप्रिय जरिया बना। यही वजह रही कि सरकार विरोधी भी ट्वीट के माध्यम से सरकार को घेरने लगे और उनके बीच भी इसका उपयोग बढ़ा। अब ट्वीट को लेकर आज आई दो खबरें बताते हैं। इन दोनों में एक ट्वीट से जहां मालदीव सरकार भारत से नाराज हो गई वहीं ट्वीट को लेकर बोलते हुए विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कांग्रेस को भी एक अच्छी बात समझाई है।
दरअसल यह दोनों मामले भारत और विदेश से जुड़े हुए हैं।एक मामला है बीजेपी के फायरब्रांड नेता सुब्रमण्यम स्वामी के एक ट्वीट का, इस ट्वीट में उन्होंने लिखा था कि अगर चुनावों में मालदीव गड़बड़ी करता है तो भारत को उसपर हमला बोल देना चाहिए। इस ट्वीट के बाद मालदीव ने कड़ी आपत्ति जताई और भारतीय राजदूत को तलब किया। हालांकि केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया कि यह उनके निजी विचार हैं और वह किसी से मुंह बंद रखने को नही कह सकते हैं। इसके बाद स्वामी ने भी सफाई देते हुए कहा कि मालदीव में मौजूद भारतीय नागरिकों के साथ गलत बर्ताव नहीं किया जा सकता। मेरी सलाह है कि ये भारत की जिम्मेदारी है कि मालदीव में वह अपने नागरिकों की रक्षा करे। मैं सरकार का प्रतिनिधित्व नहीं करता। अब देखना है इस एक ट्वीट से मचे बवाल का अंजाम क्या होता है?
ट्वीट को लेकर आज ही एक बयान और वियतनाम से आया। यह बयान भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने दिया है। वह कंबोडिया और वियतनाम के दौरे पर हैं। सुषमा ने अपने एक बयान में कहा कि हमारी सरकार और जनता के बीच मदद के लिए बस एक ट्वीट की दूरी है। हमारा मंत्रालय दुनिया के किसी भी हिस्से में महज एक ट्वीट पर मदद पहुंचाने को तत्पर रहता है। अब इन दो बयानों के बाद यही कहा जा सकता है कि ट्वीट की माया अपरंपार है। एक ट्वीट जहां मदद दिला सकता है वहीं एक ट्वीट बवाल मचा सकता है। बस यहां यही कहा जा सकता है कि यह हमारे हाथ मे है कि हम तकनीक का प्रयोग किस तरीके और मकसद से करना चाहते हैं। एक ही तकनीक और फॉर्मूले से बम और बिजली दोनो बनती है ठीक वैसे ही ट्वीट के मामले में भी है। बाकी राम जानें।