आरक्षण पर जारी बहस और एससी-एसटी एक्ट में संशोधन कर सवालों में घिरी मोदी सरकार ने चुनावों से ठीक पहले एक मास्टरस्ट्रोक खेल दिया है। राजनीतिक गलियारों सहित मीडिया और सोशल मीडिया पर इस फैसले की चर्चा ठीक उसी तर्ज पर हो रही है जैसे नोटबन्दी के समय हुई थी। यह फैसला है आर्थिक रूप से पिछड़े हुए स्वर्ण गरीबों को 10 फीसदी आरक्षण देने का, हर दल, हर नेता, हर व्यक्ति और हर वर्ग इसे अपने-अपने हिसाब से देख रहा है। कोई इस फैसले को जुमला बता रहा है तो कोई इसे 56 इंच के सीने के कमाल। खैर आज तक आरक्षण पर जारी बहस के बीच यह फैसला कहीं न कहीं काफी बड़ा और अहम दिखता है। लेकिन सवाल यह है कि क्या वाकई यही वह मास्टरस्ट्रोक था जिसके भरोसे बीजेपी थी या और ऐसे फैसले सामने आ सकते हैं?
केंद्र की मोदी सरकार एससी-एसटी एक्ट में संशोधन कर पहले ही सवर्णों की नाराजगी मोल चुकी थी। कहीं न कहीं इसका खामियाजा भी उसे पिछले महीने हुए विधानसभा चुनावों में उठाना पड़ा। इसको ऐसे समझें कि कई जगह बीजेपी प्रत्याशी के हार का अंतर हज़ार वोटों से कम रहा वहीं नोटा पर भी खूब वोट पड़े। स्वर्ण समाज पहले से ही नोटा को विकल्प बता रहा था। ऐसे में कहीं न कहीं सवर्णों को साधने के यह सबसे बेहतर विकल्प था। हालांकि यह भी साफ है कि यह कोई आखिरी मास्टरस्ट्रोक नही है। ऐसा इसलिए कह सकते हैं क्योंकि विश्वसनीय सूत्रों और मीडिया रिपोर्ट भी इसकी तस्दीक करते नजर आते हैं।
लोकसभा चुनावों की तारीखों के एलान से पहले कम से कम ऐसे दो से तीन फैसले लिए जा सकते हैं। मोदी सरकार के खास सिपहसालार और सूत्रों की मानें तो किसानों के लिए सरकार डायरेक्ट बेनिफिट स्किम की तर्ज पर कर्जमाफी न करते हुए उनके एकाउंट में पैसे ट्रांसफर कर उन्हें खुश करने की कोशिश कर सकती है। इसके अलावा बेरोजगारी भत्ता की तर्ज पर आने वाले वक्त में सरकार हर वर्ग के बेरोजगार के लिए एक निश्चित सैलरी देने सहित कई बड़े एलान कर सकती है। बेरोजगारों और युवाओं को साधने के लिए मुद्रा जैसी योजना को और आसान बनाया जा सकता है। खैर यह फैसले सही समय और सही वक्त पर लिए जाने हैं। आने वाले दो महीनों में चुनावों को देखते हुए ऐसे में कई मास्टरस्ट्रोक साबित होने वाले फैसलों की उम्मीद की जा सकती है। बाकी इनमे कितनी सच्चाई है यह तो भविष्य में ही पता चल पाएगा।
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