मोदी तुझसे बैर नही, रानी तेरी खैर नही, पढ़ें कहाँ से और क्यों आया यह नारा

राजस्थान के चुनावी समर में एक नारा इन दिनों बुलंद हो रहा है। यह नारा बीजेपी के लिए खुशखबरी भी है और साथ ही साथ दुखदाई भी। हम ऐसा इसलिए कह सकते हैं क्योंकि जिस तरह नारे में कहा जा रहा है मोदी तुझसे बैर नही और वसुंधरा यानी रानी तेरी खैर नही, उससे कम से कम यह तो साफ है कि जनता वसुंधरा के शासन से दुखी लेकिन मोदी से खुश है। यही वजह है कि राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र से निकला यह नारा अब राजस्थान की हर गली, हर गांव में गूंज रहा है।

जानकारों और स्थानीय नागरिकों की मानें तो वसुंधरा सरकार ने काम कम या ज्यादा किया तो है। हालांकि हर सरकार की तरह खूबियां और खामियां भी हैं। इनमे खूबियों की संख्या कम है और खामियों की ज्यादा है। इसके पीछे कई वजहें हैं। इन वजहों पर हम चर्चा करेंगे। हालांकि उससे पहले यह बताना भी जरूरी है कि वसुंधरा सरकार अपनी उपलब्धि और विफलता से परे अपने द्वारा किये गए कार्यों को भी न गिना पाई। यह बात खुद बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह भी स्वीकार कर चुके हैं। इसके अलावा स्थानीय मुद्दे और दलीय राजनीति भी वसुंधरा की राह में बड़े रोड़े हैं।

वसुंधरा सरकार के खिलाफ कई बातें जा रही है। ऐसे भी राजस्थान का यह इतिहास रहा है कि कोई भी दल लगातार 5 साल से ज्यादा सत्ता में नही रहा है। आंकड़े, अनुमान और आकलन यही कहते हैं कि बीजेपी में सत्ता विरोधी लहर वसुंधरा को ले डूबेगी। हालांकि बीजेपी और मोदी नाम के पक्ष में यह बात जाति दिखाई देती है कि 2019 के लोकसभा में मोदी सरकार को राजस्थान का पूरा साथ मिलेगा। इन सब से परे अगर बात मुद्दों की करें तो ग्रामीण इलाकों में पानी, किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य, अगड़ी जाती के लोगों के लिए आरक्षण, राजपूत समुदाय के लिए मानवेन्द्र सिंह का अपमान और गैंगेस्टर आंनदपाल का एनकाउंटर बड़े मुद्दे हैं। इसके अलावा मुस्लिमों का मोहभंग होना और राजपूतों का बिदकना भी बीजेपी को भारी पड़ेगा।

बीजेपी के लिए अच्छी बात यह है कि जीएसटी और नोटबन्दी जैसे मुद्दे जो कांग्रेस के लिए अहम हैं उसके बारे में जनता की सोच सकारात्मक है और वह मोदी के पक्ष में सोचती है। लोगों का मानना है कि यह फैसले अच्छी और साफ नियत से लिये गए थे। राहुल के बारे में लोग कहते हैं कि उन्होंने जब कोई जिम्मेदारी संभाली नही तो न उनसे कोई शिकायत है न उम्मीद। खैर अब देखना है कि उम्मीदों और आकलनों के इस दौर में चुनावों के बाद किसका पलड़ा भारी रहता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *