बलात्कार के मामले में फांसी से क्यों इतनी दूरी, क्या है राजनीतिक मजबूरी

भारत या किसी भी देश मे, समाज मे बलात्कार और हत्या जैसे अपराध घृणित हैं और इन मामलों में कारावास जैसी सजा छोटी लगती है। ऐसा इसलिए क्योंकि दुष्कर्म जैसे मामले न सिर्फ पीड़ित के जीवन को बर्बाद कर देते हैं बल्कि समाज मे गलत छाप छोड़ने वाले साबित होते हैं। इस मामले में यूँ तो सात साल सजा का प्रावधान है लेकिन निर्भया कांड के बाद से लगातार इसमें बदलाव की मांग होती आ रही है। हालांकि यह बहस आज भी जारी है कि इस मामले में उचित सजा क्या हो सकती है?


बलात्कार के मामलों में वृद्धि के आंकड़े भयावह हैं। कई मामलों में ऐसी हैवानियत देखने को मिली कि रूह कांप जाए लेकिन इसके बावजूद लंबी न्यायिक प्रक्रिया, सुस्त पुलिसिया कार्रवाई या अन्य वजहों से कई बार आरोपी बच निकलते हैं। यही वजह है कि दुष्कर्म के मामले में फांसी की मांग हो रही है। विशेष कर हाल के सालों में नाबालिगों के साथ यह मामले कई गुना बढ़ गए हैं? जो एक गंभीर चिंता का विषय है हालांकि आज भी सरकार बलात्कार के मामले में फांसी की सजा से इनकार कर रही है।

यह समझ से बिल्कुल परे है कि आखिर सरकार की कौन सी वह राजनीतिक मजबूरी है जिसकी वजह से ऐसे गंभीर अपराध में फांसी के प्रावधान से सरकार बचती रही है। आजीवन कारावास पुराने समय के हिसाब से सही सजा हो सकती थी लेकिन बदले सामाजिक, न्यायिक और आर्थिक परिवेश में यह कहीं से भी अब तर्कसंगत नही लगता। इसके पीछे कारण यह है कि इसे लेकर बलात्कार के आरोपी लोगों के मन से कानून का खौफ खत्म हो चुका है कहीं न कहीं वह ऐसा मान बैठे हैं कि उनका कुछ नही होना। यही अगर मौत का प्रावधान आ जाये तो शायद ऐसे गंभीर अपराधों पर खुद ब खुद बहुत हद तक काबू पाया जा सकता है।

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